यहाँ हर कोई सफर मैं हैं,
कई पहुंचना हैं किसी को,
किसी को पहुचाना हैं.
बेखबर मंझील हैं लेकीन,
हमे कही तो जाना हैं.
तकदिरों से झगडते जाना हैं,
हर वक्त बडते जाना हैं,
शाम का तो काम हि हैं धलना,
मुसाफिरों का तो काम ही है चलना,
हम थक जाते हैं, रुक जाते हैं,
हालात के आगे झुक जाते हैं,
रो हम नहीं पाते, सो हम नहीं पाते.
होता है अक्सर जिंदगी मैं,
जो हम नहीं चाहते.
एक उम्र के बाद
समझ आता.
यही जिंदगी है,
यही है सब,
हसना भी रुठणा भी,
किसी अपने का छुटना भी,
जुड जाना औंर टुटना भी,
बिखर जाना, समेटना,
कब्र मैं किसी लेटना
तह हैं आखीर. राहुल…..