सोचता हून कभी
की रस्तों पे पडी उन बारिश की नंन्ही बुंदो को
उंगली पकड घर ले आउ,
उनका बिखरना, टूटना,
आस्मांन का हाथ छूटना,
रोक सकुन,
सोचता हून कभी
कभी रस्तो को घर छोड
मंझिल के साथ,
गुमजाऊ, भटकुं इस तरह
ना मिलु जैसे किस्मत का नहीं मिलता,
सोचता हून कभी.
भाग दौड जिंदगी से,
फुरसत लुंन थोडी,
मौत ए सिरहाने, कर आंखे बंद,
बेवजाह ही कहीं रुक जाऊं,
सोचता हून कभी.