सफर से बेखबर कुछ मुसाफिर फिर रहे हैं
ये हम किस जिंदगी की खातिर मर रहे हैं,
तेरी आँखो मैं आँसु भी नहीं दीख रहा,
तो बंता ये जमीन को चुमते बूँद कहां से गिर रहे हैं.
सफर से बेखबर कुछ मुसाफिर फिर रहे हैं
ये हम किस जिंदगी की खातिर मर रहे हैं,
तेरी आँखो मैं आँसु भी नहीं दीख रहा,
तो बंता ये जमीन को चुमते बूँद कहां से गिर रहे हैं.